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मन के हारे हार हैं, मन के जीते जीत।

मन के हारे हार हैं, मन के जीते जीत।कोई व्यक्ति शारीरिक रूप से चाहे कितना भी बलशाली क्यों ना हो, यदि वह मानसिक रुप से दुर्बल है तो वह जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर सकता। मनुष्य को सदा यही विचार करना चाहिए की मैं परमात्मा की रचना हूं। मैं अपने अंदर कोई न्यूनता नहीं आने दूंगा। मन से हार नहीं मानूंगा। से बड़े से बड़े संकट में भी टकरा जाऊंगा। मन का हार मान लेना मृत्यु है और मन से विजयी रहने की भावना जीवन है। 


शास्त्रकारों ने मन को इंद्रियों का राजा माना है। मन एक महासागर के समान है जिसका कोई ओर-छोर नहीं। इसकी थाह पाना अति कठिन है। मन के किसी एक सर्वमान्य रूप का निश्चय नहीं हो सकता। गीता में मन को चंचल गति बताया गया है। ना जाने मन कहां-कहां भटकता रहता है। यदि किसी से अपना संबंध जोड़ता है तो किसी से संबंध विच्छेद करता है।

मन को वश में करना बड़ा ही कठिन है। कोई बिरला ही इस पर नियंत्रण पा सकता है। वास्तव में मन ही मानव है। मन के अनेक रंग रूप हैं। सृष्टि की रचना मन का ही खेल है। बचपन, जवानी और बुढ़ापा मन के हीं परिवर्तन है। मन मनुष्य को दुनिया में अनेक नाच नचाता है । मनुष्य की हार-जीत सच्चे अर्थों में मन के अंदर ही निहित होती है। मन से हारे व्यक्ति की जीत सर्वथा असंभव है।

साहस या उत्साह मन का सच्चा मित्र कहा जा सकता है। चाहे युद्ध का मैदान हो या खेल का मैदान, यदि मन हार गया तो समझो तन भी हार गया। कोई काम कैसा भी हो और कितना भी कठिन क्यों न हो यदि मन में उत्साह रहा वह निश्चय ही पूर्ण होगा। यदि कहीं मन पहले ही हार बैठा तो साधारण सा काम भी पहाड़ बन जाएगा। कई बार मन हार जाने पर योग्य  छात्र भी परीक्षा में विफल हो जाते हैं। उत्साह का  अंचल पकड़ साधारण छात्र अधिक अंक प्राप्त करते देखे गए हैं।

महात्मा गांधी जी ने मन के बल पर आजादी की लडाई में अंग्रेजों से टक्कर ली थी। अंग्रेजो की विशाल शक्ति को गांधी जी ने नीचे झुका दिया। अंग्रेज अपना मन हार बैठे और दूसरी ओर गांधीजी अपना मन नहीं हारे। इतिहास इस बात का साक्षी है कि अतुल बलशाली अंग्रेज भी हां महात्मा गांधी जी के शांतिपूर्ण आंदोलन के सामने टिक नहीं सके। विकट परिस्थितियों में भी गांधीजी ने भारत को स्वतंत्रता दिलाई। उन्होंने भारतीय को दिलों में एक नया जोश भर दिया इसमें हारने की भावना नहीं थी।

Essay on Will power in Hindi.जीवन का यह एक मूल सत्य है कि मन की हार सबसे बड़ी हार है। जीवन के निरंतर संघर्ष में थके हारे व्यक्ति का मन थका हारा होता है। व्यक्ति की सारी हलचल भाग दौड़ और परेशानियां मन की ही तो है। व्यक्ति जब भी गिरता है तो मन से ही गिरता है। वह हारता है तो मन से हारता है। गुरु नानक देव जी ने इसी कारण कहा हैं - मन जीते जग जीत।



मन से कभी हार न मानना महानता की कसौटी हैं। भारत में जितने भी महापुरुष हुए हैं उनकी शिक्षा यही थी की कभी मन में दुर्बलता न आने दो। संकटों की परवाह ना करते हुए लक्ष्य को पाने के लिए संघर्ष करो। भगवान श्री कृष्ण ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अर्जुन को यही उपदेश दिया था की मन की दुर्बलता को छोड़ कर युद्ध के लिए तैयार हो जाओ। यदि अर्जुन मन से हार जाता बैठता तो संभवतः महाभारत युद्ध का परिणाम कुछ और ही होता।

हमें अपने मन को संयमशील बना कर ऊँची भावनाओं का स्वामी बनना चाहिए। किसी भी कार्य में हीन-भावना का शिकार हो कर निरुत्साहित नहीं बनना चाहिए। सफलता की प्राप्ति के लिए पुरे मन से प्रयत्नशील बनो, निश्चय ही आपकी साधना सफल होगी। मन से कभी हार न मानो , इस स्तिथि में जीत आपका स्वागत करेगी। कबीर ने ठीक ही कहा हैं - मन के हारे हार हैं, मन के जीते जीत।

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