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नील कमल।

नील कमल की कहानी.एक शहर में एक सौदागर और उसकी पत्नी रहते थे। दोनों का आपस में बहुत ही ज्यादा प्यार था। एक बार जब सौदागर व्यपार करने के लिए चला तो उसकी पत्नी ने कहा “आप जब बाहर रहोगे तो आपके हाल-चाल का मुझे कैसे पता चलेगा?” 

सौदागर ने अपनी पत्नी को एक चाकू देते हुए कहा “जितना समय यह चाकू ऐसे चमकता रहेगा तो समझ लेना मैं ठीक-ठाक हूँ। अगर इस चाकू का रंग काला पड़ जाये तो समझ लेना मैं बीमार हूँ। अगर इस चाकू का रंग लाल हो जाये तो समझ लेना की मैं मर गया हूँ।”

फिर सौदागर अपनी पत्नी से कहने लगा “आप जब मेरे जाने के बाद घर में अकेले रहोगे तो मुझे आपके सुख-दुःख के बारे में कैसे पता लगेगा?” तब सौदागर की पत्नी उसी समय एक तालाब में गयी और नीले रंग का एक कमल का फूल तोड़कर ले आई। उसने यह फूल एक गमले में डाल कर सौदागर को दे दिया और कहा “जब तक यह नील कमल ऐसे खिला रहेगा तो आप समझ लेना मैं ठीक हूँ, अगर यह मुरझा जाये तो समझ लेना मैं मुसीबत में हूँ।”

सौदागर बहुत सारे हीरे-मोती और ढेर सारा सामान लेकर व्यापार करने के लिए दुसरे देश में गया। वहाँ के राजा को हीरे-मोती बेचे। जब राजा हीरे-मोती देख रहा था तब उसकी नज़र नील कमल के फूल पर पड़ी। वह फूल बहुत खूबसूरत और ताज़ा था। राजा हैरान रह गया की कमल बिना पानी के गमले में कैसे ताज़ा रह सकता है?

उसने सौदागर से इसके बारे में पूछा तो सौदागर ने नील कमल की खासियत और अपनी पत्नी की सूझ और परस्पर प्रेम के बारे में बताया। राजा ने सोचा की सौदागर की पत्नी बड़ी सुन्दर और गुणवान स्त्री होगी, जिस की शक्ति के कारण कमल की सुंदरता और ताज़गी लगातार कायम है। राजा के मन में सौदागर की पत्नी को मिलकर देखने की इच्छा जाग पड़ी। उसने अपने मन की हसरत अपने मंत्री को बताई। मंत्री राजा की इच्छा को पूरा करने के लिए उपाय सोचने लगा। आखिर सोच-सोच कर उसने दो चाले चली। एक तो सौदागर को और छह महीने के लिए अपने राज्य में ठहरने के लिए मजबूर कर लिया। दूसरा उसने दो ठगनीयों को बुलाया। ठगनीया कहने लगी की वह सौदागर की पत्नी को यहाँ ही ले आएँगी, उनके पास तो आसमान के तारे तोड़ देने की शक्ति है।

उन दोनों ठगनीयों ने योजना के मुताबिक गेरुए रंग के कपड़े पहने और सौदागर के शहर की ओर चल पड़ी। सौदागर के घर पहुँच कर एक ठगनी उसकी पत्नी को कहने लगी, “पुत्री, मैं तेरी नानी की बहन हूँ इसलिए तेरी भी नानी हुई और यह मेरी पड़ोसन है,” उसने दूसरी ठगनी की ओर इशारा करते हुए कहा।

सौदागर की पत्नी बहुत चालाक थी। उसने कहा “मैंने तो आपको कभी भी नहीं देखा है।” ठगनी बोली,”पुत्री तू उस समय बहुत छोटी थी, जब हम दोनों तीर्थ करने के लिए चली गयी थी।” “परन्तु आपने इतनी जल्दी मुझे पहचान कैसे लिया?” सौदागर की पत्नी ने पूछा। “तेरी ठोड़ी के उपर लगे तिल से” एक ठगनी ने एकदम उत्तर दिया।

सौदागर की पत्नी को यकीन हो गया की यह औरते झूठीं है क्योंकि ठोड़ी वाला तिल तो उसने उसी दिन काजल से बनाया था। वह ठगनीयों से कहने लगी,”बड़ी मेहरबानी, जो आपने दर्शन दिए। आप यहाँ बैठो मैं आप लोगों के लिए भोजन का प्रबन्ध करती हूँ।” उसने भोजन में भांग मिला दिया। जब ठगनिया भोजन कर रही थी तो उनको भांग का नशा चढ़ना शुरू हो गया। वह ऊँची-ऊँची बातें करने लगी, “हम अब राजा से बहुत ज्यादा इनाम प्राप्त करेंगी। सौदागर की पत्नी हो हम ही ले जाएँगी।” थोड़ी देर बाद वह दोनों सो गयी। सौदागर की पत्नी ने उनको पलंग के साथ बांध कर अंदर के कमरे में बंद कर दिया। वहाँ पर वह उन दोनों ठगनीयों को भांग के पकौड़े खिलाती जाती और वह दोनों सारा दिन सोयी रहती।

जब कई दिन बीत गए और ठगनीया वापिस नहीं लौटी तो राजा ने दो ठग मंगवाए । उनको सारी बात बताई। ठगों ने कहा, ” लो, उस औरत को यहाँ लेकर आना कौन सी बड़ी बात है। हमारे आगे तो बड़े-बड़े पानी भरते है।”

वह दोनों ठग सौदागरों का भेष धारण करके सौदागर की पत्नी के पास पहुचे। उन्होंने सौदागर की पत्नी से कहा की उसका पति बीमार है। वह बिस्तर से उठ नहीं सकता है। वह आपसे मिलने के लिए तरस रहा है। सौदागर की पत्नी उसी वक्त अंदर गयी और सन्दूक में से चाकू निकाल कर देखने लगी। चाकू पूरी तरह चमक रहा था। वह समझ गयी की यह दोनों आदमी ठग है। उसने बाहर आकर ठगों से कहा, “आप लोग थके होंगे, कुछ खा-पी ले तब तक मैं तैयार भी हो जाउंगी।” उसने ठगों को भी खाने के साथ भांग के पकौड़े खिला दिए। ठग पकौड़े खा कर उल-जलूल बोलने लग गए। सौदागर की पत्नी ने उन्हें दुसरे कमरे में बंद कर दिया। वह उनको भी भांग के पकौड़े खिलाती रही और वह भी सारा दिन सोये रहते।

इसी प्रकार कई दिन बीत गए । राजा ने मंत्री को बुला कर कहा,”लगता है ठग भी अपने लक्ष्य में कामयाब नहीं हुए। अब हमें ही चलना चाहिए।”

तब राजा और मंत्री सौदागर के घर के दरवाजे पर पहुँच गए। उन्होंने दरवाजा खड़काया तो सौदागर की पत्नी बाहर आई। मंत्री ने कहा की उनको सौदागर की पत्नी से मिलना है। सौदागर की पत्नी कुछ सोच कर बोली,” मैं तो उनकी दासी हूँ। आप पहले बैठो और भोजन ग्रहण करो। फिर आप मालकिन से मिल लेना।” इसके बाद वह उनको रोटी खिलने लग गयी। जब वह पानी, सब्जी या रोटी लेकर आती तो भेष बदल-बदल कर आती।

राजा और मंत्री यही समझे जा रहे थे की सौदागर की पत्नी की कई दासियाँ है और इनकी शक्ले आपस में मिलती है। जब सौदागर की पत्नी दासी के रूप में तीसरी बार आई तो मंत्री ने पुछ ही लिया, ” आप सभी की शक्ले बहुत मिलती है।” सौदागर की पत्नी कहने लगी,”हम तीन बहने सौदागर की पत्नी की दासियाँ है।”

मंत्री कहने लगा,”अगर तू हमारा एक काम करवा दे तो तुझे हम बहुत सारा इनाम देंगे।” उपर उपर से खुश दिखाई देती सौदागर की पत्नी ने कहा,”हुक्म करो।”

राजा ने कहा,” मैं सौदागर की पत्नी को अपने महल में ले जाना चाहता हूँ ।” दासी के रूप में सौदागर की पत्नी कहने लगी, “यह कोई मुश्किल बात नहीं है। आप एक बड़ी सी डोली तैयार करो जिसमे हमारी मालकिन और हम तीनो दासियाँ बैठ सके। परन्तु शर्त यह है की आपने रास्ते में ना डोली रोकनी है और नाही हमारी मालकिन को बुलाना है। डोली महल में ही जाकर खोलनी होगी। मैं सौदागर की पत्नी को कैसे भी करके तैयार करती हूँ।” यह कह कर वह अंदर चली गयी। मंत्री डोली तैयार करवा कर ले आया। दासी बनी सौदागर की पत्नी ने डोली अंगने में रखवा कर मंत्री और राजा को अंगने से बाहर भेज दिया। तब उसने दोनों ठगनीयों और दोनों ठगों को भांग के नशे में बेहोश करके, उनके सीर और मुँह बांध के और कालिख मल के डोली में डाल दिया। फिर दासी बनी सौदागर की पत्नी ने बाहर आ कर राजा और मंत्री से कहा,”हम सभी डोली में बैठने लगी है, आप कन्हार बुलवा कर डोली ले चलो।” खुद वह अपने कमरे में चली गयी।

राजा और मंत्री बहुत प्रसन्न थे। वह जल्दी-जल्दी डोली को लेकर महल में आ गए। जब उन्होंने डोली को खोला तो हाथ मलते रह गए। डोली के अंदर ठगनीया और ठग थे। राजा को बहुत गुस्सा आया। पर वह कर ही क्या सकता था। आखिर मंत्री ने एक और चाल चली। उसने राजा के साथ विचार-विमर्श करके सौदागर को बुलाया और कहा,”महाराज तुमसे बहुत प्रसन्न है। वह तुम्हे राजदरबारी बनाना चाहते है।” सौदागर यह सुन कर बहुत प्रसन्न हुआ। तब मंत्री ने कहा,”राजदरबारी बन कर अब तुम्हे यहीं पर रहना है , इसलिए तुम अपनी पत्नी को भी यहाँ पर ले आओ।”

सौदागर उसी समय अपनी पत्नी के पास गया और अपने राजदरबारी बनाये जाने की बात बताई। साथ ही राज्यधानी में रहने की भी बात बताई। उसकी पत्नी ने कहा की इसमें राजा की कोई चाल है। परन्तु सौदागर के सिर पर राज्यदरबारी बनने का भूत सवार था। उसने अपनी पत्नी की एक ना सुनी और वह उसे भी लेकर राजा के शहर में आ गया। सौदागर और उसकी पत्नी अब वहाँ रहने लगे।

कुछ दिन बीते ही थे की राजा ने मंत्री से कहा की वह सौदागर की पत्नी से मिलने के लिए कोई तरकीब बनाये। मंत्री ने सौदागर को बुला कर कहा की महाराज को एक चीज़ जिसका नाम ‘कुछ‘ है की बहुत आवश्यकता है वह उस चीज़ को कही से ले आये। सौदागर बड़े भरोसे से कहने लगा की वह जल्दी ही यह वस्तू ले आएगा। परन्तु वास्तव में उसको इस वस्तु के बारे में कोई ज्ञान नहीं था। उसने घर आकर अपनी पत्नी से बातचीत की। पत्नी समझ गयी की राजा ने सौदागर को कहीं भेजने की चाल चली है। उसने अपने पति से कहा की इस वस्तु के बारे में उसे पता है, इस लिए वह चिंता ना करे। उसने अपने पति के साथ मिलकर दो गड्ढे खोदे। एक गड्ढे में गुड़ की चासनी भर दिया और दुसरे गड्ढे में पंछियों के पंख और रूई आदि भर दिए। फिर उसने अपने पति से कहा,”अब आप बाहर सभी को बता दो की आप किसी और देश में ‘कुछ‘ लेने के लिए जा रहे हो। सारा दिन आप जंगल में रह लेना और रात को घर में आकर सो जाया करना।

पहले ही दिन राजा को नौकरों-चाकरों से पता चाल गया की सौदागर किसी दुसरे देश के लिए रवाना हो चूका है। रात को राजा सौदागर के घर जा पंहुचा और उसकी पत्नी से कहने लगा की वह उसका हाल-चाल पूछने के लिए आया है। सौदागर की पत्नी ने ऊपर से बहुत खुशी ज़ाहिर किया। वह राजा को पानी आदि पिलाने लगी। इतने में सौदागर ने दरवाज़ा खड़काया। सौदागर की पत्नी ने पूछा की वह वापिस क्यों आ गया है तो उसने जवाब दिया की वह अपनी तलवार घर में भूल गया था, उसे लेने आया है। जब सौदागर की पत्नी दरवाज़ा खोलने लगी तब राजा ने कहा,”मुझे कही छुपा दो नही तो मेरी बड़ी बदनामी होगी।” सौदागर की पत्नी ने उसे चासनी वाले गड्ढे में छुपने के लिए कहा। जब राजा चासनी वाले गड्ढे में छुपा तो चासनी उसके शरीर में चिपक गयी तो वह घबरा कर बाहर आ गया। सौदागर की पत्नी ने फिर उसे पंखो वाले गड्ढे में धकेल दिया। और साथ ही उसने दरवाजा खोल दिया। सौदागर को उसकी पत्नी ने बताया,” अब आपको बाहर जाने की आवश्यकता नहीं है, मैंने ‘कुछ‘ पकड़ लिया है।”

दोनों दे पंखो वाले गड्ढे में से राजा को बाहर निकाला। राजा के सारे शरीर पर पंख चिपक गए थे। उसको पहचानना मुश्किल था। सौदागर ने भी उसे नही पहचाना। राजा डर के मारे कुछ बोल नहीं सका।

सौदागर की पत्नी ने राजा के गले में रस्सी डालकर कहा की इसे मंत्री के हवाले कर आओ। सौदागर राजा को मंत्री के पास ले गया और कहा,”यह अपना ‘कुछ‘ ले लो। अब यह आपकी जिम्मेंवारी है।” जब सौदागर घर आ गया तो राजा ऊँची-ऊँची रोने लग पड़ा। मंत्री ने राजा को पहचान लिया। दोनों ने सौदागर की पत्नी से तौबा किया।
दुसरे दिन सुबह दरबार में सौदागर ने जाकर राजा को बताया की उसने ‘कुछ‘ मंत्री को सौंप दिया है। राजा ने फिर कहा की उसने वह ‘कुछ‘ देख लिया है। उसने सौदागर को ढेर सारे इनाम दिए। तब सौदागर ने राजा से कहा,” महाराज कभी हमारे घर में भी चरण डाले।” राजा की जगह मंत्री ने उत्तर दिया, “महाराज ने किसी के भी घर ना जाने के कसम खायी हुई है।”



Disclaimer : - This story was send from Navjyot Kumar. Hinglishpedia appreciate Navjyot Kumar for write such a good, interesting & hilarious story in Hindi.  Thank you very much, we  hope readers should be also like this funny & interesting story. Thanks Mr. Navjyot Kumar.

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