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नल और दमयंती की कहानी।

नल और दमयंती के कहानी।निषद देश के वीरसेन नामक राजा का एक पुत्र था। जिसका नाम नल था। वह तेजस्वी, गुणवान, सुन्दर और बलवान था। घोड़े दौड़ाने में उसे अद्धभुत कला आती थी। इसी प्रकार विधर्व नाम के देश में भीम नाम का एक राजा राज्य करता था। उस की एक पुत्री थी, जिसका नाम दमयंती था। वह रूपमती, बुद्धिमान और भी अनेक गुणों की स्वामिनी थी। नल और दमयंती अपने गुणों के कारण शीघ्र ही लोगों में पहचाने जाने लगे। उनको भी अपनी एक दूसरों की बड़ाईयों का पता लग गया। इस प्रकार बिना एक दुसरे से मिले ही धीरे-धीरे वह एक दुसरे के प्रति लगाव महसूस करने लगे। 

दमयंती के जवान होने पर उसके पिता ने उसके विवाह के लिए एक स्वयंवर का आयोजन किया। दमयंती के साथ विवाह करने की इच्छा लेकर दूर-दूर देश के राजा और राजकुमार पहुचें। और तो कई देवता भी राजा का रूप धारण करके उस स्वयंवर में पहुचें। दमयंती पहले से ही मन ही मन में नल को अपने पति के रूप में स्वीकार कर चुकी थी। अचम्भा यह हुआ की जब दमयंती राजा नल के गले में जयमाल डालने के लिए आगे बढ़ी तो उसे उस स्वयंवर में एक नल नहीं बल्कि कई राजा नल उस स्वयंवर में दिखाई दिए। कई देवताओं ने राजा नल का रूप धारण किया हुआ था। पर जब उसने ध्यान से एकाग्रचित्त होकर देखा तो उसे असली नल को पहचानने में कोई कठिनाई नहीं हुई। उसने देखा की देवताओं के शरीर के ऊपर पसीने की कोई बूँद नहीं थी। उनकी आँखों के पल्के भी नहीं झपकती थी। उनके पैर भी धरती को नहीं स्पर्श करते थे और उनकी कोई परछाई भी नहीं बनती थी। दमयंती ने वरमाला नल के गले में डाल दिया। सभी ने उसके चुनाव पर प्रसन्नता प्रगट किया। देवताओं ने भी आशीर्वाद दिए।

नल और दमयंती दोनों खुशी-खुशी रहने लगे। उनके घर में एक लड़के और एक लड़की ने जन्म लिया। इस दौरान कलयुग को उनकी खुशी बर्दाश्त नहीं हुई। उसने रंग में भंग डालने के बारे में सोचा। उसने कहा की मैं नल के अंदर निवास करूँगा और अपनी चाल चल के उसको राज-भाग से दूर कर दूंगा। फिर उसको दमयंती भी प्यार नहीं कर सकेगी।


कुछ समय पश्चात राजा नल के मन में जुआ खेलने का भूत सवार हुआ और वह अपने छोटे भाई पुष्कर के साथ जुआ खेलने लग गए। कलयुग के प्रभाव के कारण वह हारते चले गए और पुष्कर जीतता चला गया। जब दमयंती को इस बात का पता चला तो उसने राजा नल को जुआ ना खेलने के लिए प्रयत्न किया। परन्तु राजा नल के मन की हालत ऐसी हो गयी थी की वह उस समय किसी भी अच्छी सलाह को सुन नहीं रहा था।


दमयंती ने आगे आने वाले बुरे समय का अनुमान करके अपने दोनों बच्चों को अपने पिता के पास भेज दिया। अब राजा नल जुए में अपना सब कुछ हर चूका था। बस अब उनके पास सिर्फ एक वस्त्र बचा था। पुष्कर ने राजा नल का राज्य जुए में जीत जाने के उपरांत प्रजा को हुक्म दिया की नल और दमयंती की किसी भी प्रकार की सहायता ना की जाये, यहाँ तक की उन्हें अन्न-जल भी ना दिया जाये।



नल अपना राज्य छोडकर जंगल की ओर चल पड़ा। दमयंती भी उसके साथ चल पड़ी। तब राजा नल ने दमयंती को अपने पीछे आते हुए देखकर उसे रोकते हुआ कहा की वह अपने पिता के घर चली जाये, जंगल में रहना बड़ी कठिन है। रास्ते में अनेक मुसीबतें आएँगी, इसलिए यही अच्छा होगा की इस मुसीबत की घडी में वह अपने पिता के पास चली जाए। आगे दमयंती ने कहा की उन दोनों ने विवाह के समय दुःख-सुख में इक्कठे रहने का प्रण लिया था। इसलिए वह हर हालत में उसके साथ रहेगी। वह अपने परम प्यारे से जुदाई बर्दाश्त नहीं कर सकेगी, अन्त में दोनों जंगल की ओर चल पड़े। 

नल और दमयंती कई दिनों तक भूखे रहे। सफर की थकावट ने उनका हाल बेहाल कर दिया था। एक शाम वह एक धर्मशाला के पास ठहरे हुए थे। बहुत ज्यादा थकावट के कारण दमयंती को नींद आ गयी। पर चिंता के कारण राजा को नींद नही आई। राजा नल सोचने लगे की उनके साथ रहते हुए दमयंती को ना जाने कौन-कौन से दुःख झेलने पड़ेंगे। और साथ ही उनके मन में विचार आया की अगर वह दमयंती को सोया हुआ छोडकर चले जाये तो वह उन्हें बेवफा समझेगी। काफी कश्मकश के बाद नल ने दमयंती को सोया हुआ छोड़ कर अकेले चले जाना बेहतर समझा। 


सुबह होने पर जब दमयंती जागी तो अपने साथ राजा नल को ना देखकर उसका मन त्रात-त्रात हो गया। वह बावली होकर उसे ढूँढने के लिए जंगल की तरफ चल पड़ी। वह विर्लाप करती हुई कभी राजा नल को पुकारती कभी ऊँची-ऊँची बोल कर राजा नल के बारे में पूछती और कभी अपने आप को कोसतीं। 

रास्ते में एक अजगर था। उसने दमयंती को पैरों की ओर से निगलना प्रारम्भ कर दिया। उसी समय एक शिकारी वहाँ आया, जिसने तलवार से अजगर को मार गिराया और दमयंती की जान बचाई। दमयंती की बिपता यही पर ना खत्म हुई। जिस शिकारी ने दमयंती के प्राण बचाए थे, उसके मन में दमयंती के प्रति मंद-भावना पैदा हो गयी। पर ऊँचे आचरण वाली दमयंती में एक बेअन्त शक्ति पैदा हुई, और उसने शिकारी को मार गिराया। राजा नल की तलाश में दमयंती रोती-बिलखती जंगल में भटक रही थी। उसके मन की हालत ऐसी हो गयी थी की वह जंगल के वृक्षों, पौधों और पर्वतों के आगे पुकार-पुकार कर राजा नल के बारे में पूछती। जंगल में उसको कई ऋषि मिले, जिन्होंने उसकी हालत देखकर उसे धीरज बंधाने का प्रयत्न किया। फिर वह एक काफिलें के साथ चेदी राज्य की राज्यधानी में पहुच गयी। यहाँ की राज-माता दमयंती की मौसी थी। उसने दमयंती को बहुत प्यार के साथ अपने पास रखा। 


कुछ दिनों के पश्चात राज-माता ने दमयंती को उसके पिता के पास पंहुचा दिया। दमयंती के पिता ने अपने राज्यदरबार के ब्राह्मणों को राजा नल की तलाश के लिए चारो दिशाओ में भेज दिए।

उधर राजा नल अनेक प्रकार के कष्ट झेलता हुआ राजा ऋतुपर्ण के पास चला गया। यहाँ पर वह घोड़े हाकने का माहिर होने के कारण भेष बदल कर घोडो के वाहक के रूप में नौकरी करने लगा। वैसे उसकी हालत बहुत ज्यादा खराब हो चुकी थी। उसका सुन्दर शरीर अब पहचाना नहीं जाता था। इस दौरान राजा भीम का एक ब्राहमण राजा ऋतुपर्ण के पास आया। राजा नल जो वहाँ घोडो के वाहक के रूप में रहता था, के साथ बात-चीत करते उस ब्राहमण को शक पड़ गया की यह राजा नल है। उसने वापिस जाकर उसका हुलिया दमयंती को बताया। दमयंती ने राजा नल को फिर से मिलने के लिए और राजा नल के होने की तस्सली के लिए स्वयंवर का ऐलान किया। इस स्वयंवर में पहुचने के लिए केवल एक दिन का समय दिया गया। उसने स्वयंवर का सन्देशा केवल राजा ऋतुपर्ण के पास भेजा। ऋतुपर्ण बहुत ही हैरान हुआ क्योंकि स्वयंवर में पहुचने का समय केवल एक दिन ही था। राजा नल ने ऋतुपर्ण से कहा की वह फ़िक्र ना करे। वह ऋतुपर्ण को स्वयंवर में ठीक समय तक पहुचा देगा। 

वास्तव में दमयंती ने यह स्वयंवर राजा नल की पहचान करने के लिए ही रखा था। दमयंती को पूर्ण भरोशा था की राजा नल ही इतने थोड़े समय में इतनी दूर घोडो को भगा कर ले आ सकता था।

जब ऋतुपर्ण ने नल को इतनी तेज़ी के साथ घोडो को दौडाते हुए देखा तो वह बहुत प्रभावित हुआ। उसने नल से कहा की वह उसे भी घोड़े दौड़ाने की कला उसको भी सिखा दे। इसके बदले वह राजा नल को जुआ खेलने की कला सिखायेगा। ऋतुपर्ण जुआ खेलने में बहुत ज्यादा माहिर था। ऋतुपर्ण ने राजा नल को जुए के गुर बताये और नल ने ऋतुपर्ण को घोड़े दौड़ाने का भेत बताया।

आखिर ठीक समय तक ऋतुपर्ण और राजा नल जो उस समय वाहक के रूप में था दोनों राजा भीम की नगरी में पहुच गए। वहा भी कोई राजा नल को पहचान नहीं पाया। यहाँ पर दमयंती ने एक दासी के माध्यम से राजा नल के साथ सम्पर्क किया। राजा नल दमयंती के स्वयंवर रचने पर बड़ा दुखी था। पर जब उसे यह पता लगा की दमयंती ने यह सभी योजना उसे ढूँढने के लिए ही बनाई है तो उसके सभी शक दूर हो गए। राजा नल का दमयंती और बच्चों के साथ पुनर्मिलन हो जाने के कारण सभी बहुत खुश हुए। इस खुशी में राजा भीम ने कई समागम किये। 

कुछ समय के पश्चात राजा नल अपने भाई पुष्कर के पास गया और उसे फिर से जुआ खेलने के लिए ललकारा। जुए की नयी सीखी कला के कारण उसने पुष्कर से ना केवल अपना हारा हुआ राज-भाग फिर से जीत लिया और तो और पुष्कर का भी सारा राज्य हासिल कर लिया। पर राजा नल पुष्कर जैसा दुष्ट नहीं था। उसने सज्जनता दिखाते हुए पुष्कर को उसका सारा राज्य वापिस कर दिया।

इसके बाद सभी खुशी-खुशी रहने लगे। दमयंती और राजा नल का आपसी प्यार इतने दुखों और कष्टों में से गुजर कर और भी ज्यादा बढ़ गया।
  
Disclaimer :- इस कहानी को हमें नवज्योत कुमार जी ने हमें जालंधर, पंजाब से भेजा हैं, ऐसी बढ़िया और मजेदार कहानी के लिए Hinglishpedia और उसके सभी रीडर्स नवज्योत कुमार जी को बहुत-बहुत धन्यवाद देते हैं, सच-मुच में नवज्योत कुमार जी आपकी भेजी यह कहानी हमें बहुत अच्छी लगी. Thanks for writing such good Hindi story. 

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